ऊधौ प्रेम गऐ प्रान रहै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


 
(ऊधौ) प्रेम गऐ प्रान रहै, कौन काज आवै।
जैसे ससि निसा गऐ, सोभा नहिं पावै।।
विविध खग जु एक रूप, बोलत मृदु बानी।
नैन अछत चातक की, प्रीति जगत जानी।।
औरै जग जीवन कौ, नाम न कोउ जानै।
एक प्रेम लीन मीन, कीरति जग बखानै।।
अति सुबास सुमन सबै, देखत जिय भावै।
वै सु प्रेम पंकज कौ, सब तजि कित गावै।।
जिन नैननि मोहन मुख, कमलनैन हेरौ।
मूँदौ ते नैन कहत, कौन ज्ञान तेरौ।।
अविनासी निर्गुन कहा, ब्रजहिं आनि भाष्यौ।
'सूरदास' जीवनधन स्याम, कहा राख्यौ।। 3598।।

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