(ऊधौ) नंद कौ गोपाल मोसी गयौ तृन ज्यौ तोरि।
मीन जल की प्रीति कीन्ही, नाहिं निबही और।।
अबकै जौ हम दरस पावै, देहिं लाख करोर।
हरि सौ हीरा खाइ कै हम, रही समुद्र झकोर।।
ऊधौ हमरौ दोष नाही, वै जु निपट कठोर।
हम जपति है नाम निसि दिन, जैसै चंद चकोर।।
दासी हम बिनु मोल की अलि, ज्यौ गुड़ी बस डोर।
‘सूर’ के प्रभु दरस दीजै, नहीं मनसा और।।4019।।