ऊधौ ते कत चतुर कहावत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


ऊधौ ते कत चतुर कहावत।
जे नहिं जानै पीर पराई, ह्वै सरबज्ञ जनावत।।
जो पै मीन नीर तै बिछुरै, को करि जतन जिवावत।
प्यारे प्रान जात जल बिनु, तिहिं सुधा समुद्र बतावत।।
हम विरहिनी स्याम सुंदर की, तुम निरगुनहिं गहावत।
जोग भोग, रस रोग, सोग सुख, जाने जगत सुनावत।।
ये दृग मधुप सुमन सब परिहरि, कमल बदन रस भावत।
सोवत जागत सुपन रैनि दिन, वह मूरति मन ध्यावत।।
कहि कहि कपट सँदेसनि मधुकर, कत बकवाद बढ़ावत।
क्रूर कुटिल कपटी चित अंतर, 'सूरदास' कवि गावत।।3888।।

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