ऊधौ जोग जोग कहत, कहा जोग कीऐ।
स्याम सुदर कमलनैन, बसौ मेरे जीऐ।।
जोग जुगुति साधन तप, जोगि जुग सिरायौ।
ताकौ फल सगुन मूर्ति, प्रगट दरस पायौ।।
मकराकृत कुडल छवि, राजति सु कपोलै।
मोर मुकुट पीत बसन, बाँसुरि कर बोलै।।
ऐसे प्रभु गुननिधान, दरस देखि जीजै।
राम स्याम निधिपियूष, नैननि भरि पीजै।।
जाकौ अयन जल मैं, तिहि अनल कैसै भावै।
‘सूरज’ प्रभु गुननिधान, निरगुन क्यौ गावै।।3700।।