ऊधौ को तुम्हरे कहै लागै।
कहा करै काकै मति एती, जोग साधि तन आगै।।
हम बिरहिनि बिरहा की जारी, जारे ऊपर दागै।
राज करै यह ज्ञान तुम्हारौ, मुक्ति को तुम सौ माँगै।।
वह मूरति मन गड़ी हमारै, टरति न सोवत जागै।
वारक मिलै सूर के प्रभु तौ, मन हमरे अनुरागै।। 168 ।।