ऊधौ किहिं बिधि कीजै जोग।
जे रस रसी स्यामसुंदर के, ते क्यौ सहै वियोग।।
पूछहु जाइ चकोर चंद हित, दरसन जौ सुख पावत।
चातक स्वाति बूँद चित बाँध्यौ, जलनिधि मनहिं न आवत।।
अरु रस कमल सिलीमुख जानत, कंटक सूल सहै जो।
जानै रसिक मैन बिछुरन दुख, मरतहुँ प्रीति लहै जो।।
तुमहूँ रसिक कहावत मधुकर, आपु स्वारथी जैसौ।
कहा करै ये ‘सूर’ प्रेम बस, बिनु हित जीवन कैसौ।।3698।।