ऊधौ कह्यौ धन्य व्रजवाला। जिनके सरबस मदन गुपाला।।
मैं कीन्हौ हो और उपाई। तुम्हरे दरस भक्ति निजु पाई।।
तुम मन गुरु मैं दास तुम्हारौ। भक्ति सुनाइ जगत निस्तारौ।।
भ्रमर गीत जो सुनै सुनावै। प्रेम भक्ति गोपिनि की पावै।।
‘सूरदास’ गोपी बड़भागी। हरि दरसन की ढोरी लागी।।4094।।