ऊधौ कहौ कहन जौ पारौ।
नाही बलि कछु दोष तिहारौ, सकुचि साध जनि मारौ।।
नाही ब्रज बसि नंदलाल कौ, बालबिनोद निहारौ।
नाही रास रसिकरस चाख्यौ, तोड़ि लई सो डारयौ।।
जौ नहिं गयौ ‘सूर’ प्रीतम सँग, प्रान त्यागि तन न्यारौ।
तौ अब बहुत देखिबै सुनिबै, कहा करम सौ चारौ।।3519।।