ऊधौ कहि मधुबन की रीति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


ऊधौ कहि मधुवन की रीति।
राजा होइ जदुनाथ तिहारे, कहा चलाई नीति।।
निसिकर करत दाह दिनकर लौ, हुतौ सदा ससि सीत।
पूरब पवन कह्यौ नहिं मानत, गयौ सहज बपु जीति।।
कंस काज कुबिजा कै मारयौ, भई निरंतर प्रीति।
‘सूर’ विरह ब्रज भलौ न लागत, जही ब्याह तहँ गीति।।3783।।

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