ऊधौ कहा हमारी चूक -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


 
ऊधौ कहा हमारी चूक।
वे गुन ये अवगुन सुनि हरि के, हृदय उठति है हूक।।
बिनही काज छाँड़ि गए मधुवन, हम घटि कहा करी।
तन, मन, धन आतमा निवेदन, सौ उन चितहिं धरी।।
रीझे, जाइ सुंदरी कुबिजा, इहि दुख आवति हाँसी।
जद्यपि क्रूर, कुरूप, कुदरसन, तद्यपि हम ब्रजवासी।।
एते ऊपर प्रान रहत घट, कहौ कौन सौ कहियै।
पूरब कर्म लिखे बिधि अच्छर, ‘सूर’ सबै सो सहियै।।3354।।

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