ऊधौ कत ये बातै चालीं।
कछु मीठी कछु मधुरी हरि की, ते उर अतर साली।।
तब ये बेली साँचि स्याम घन, अपनौ करि प्रतिपाली।
अब ये बेली सूखतिं हरि बिनु, छाँड़ि गए वनमाली।
जबही कृपा हुती जदुपति की, सँग रस रास सुखाली।
'सूरदास' प्रभु तब न मुई हम, जीवहि विरह की जाली।।3823।।