ऊधौ ऐसी हम गुपाल बिनु -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


ऊधौ ऐसी हम गुपाल बिनु। सबही तै जैसैं हरुवौ तृनु।।
सोचत गनत जाइ इहिं विधि दिनु। जुग समान निसि होत एक छिनु।।
कहियौ ‘सूर’ सँदेस स्याम तिनु। जनि राखौ प्रभु पोच वचन रिनु।।4023।।

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