ऊधौ उदित भए दुख तरनि।
ब्रज बेली सब सूखन लागी, बात कही नंदघरनि।।
कुमुदबदन कुम्हिलात सबनि के, गइयनि छाँड़ी चरनि।
सुख संपति बिति गई सबनि की, अँखियनि लागी झरनि।।
देखै चारु चंद मुख सीतल, बिन क्यौ मिटिहै जरनि।
सुत सनेह ‘सूरज’ प्रभु जसुमति, परति जु किरि किरि धरनि।।3952।।