(ऊधौ) इन बतियनि कैसै मन दीजै।
बिनु देखे वा स्याम सुंदर के, पल पल ही तन छीजै।।
जो कर आनि हमारै दीनौ, सो अपने कर लीजै।
बाँचि सुनावहु लिख्यौ कहा है, हम बाँचत यह भीजै।।
बड़ौ मतौ है जोग तिहारे, सो हमरैं कह कीजै।
अच्छर चारिक आनि सुनावहु, तिनहिं आस करि जीजै।।
उर की सूल तबै भल निकसे, नैन वान जौ कीजै।
'सूरदास' प्रभु प्रान तजति हौ, मोहन मिलै तौ जीजै।।3717।।