ऊधौ इतनी जाइ कहौ।
सबै विरहिनी पा लागति है, मथुरा कान्ह रहौ।।
भूलिहुँ जनि आबहु इहि गोकुल, तपति तरनि ज्यौ चंद।
सुंदर बदन स्याम कोमल तन, क्यौ सहिहै नँदनंद।।
मधुकर, मोर, प्रबल पिक, चातक, बन उपवन चढ़ि बोलत।
मनहु सिह की गरज सुनत गो बच्छ दुखित तन डोलत।।
आसन असन अनल अनल विष अहि सम, भूषन विविध बिहार।
जित तित फिरत दुसह द्रुम द्रुम प्रति, धनुष धरे सत मार।।
तुम हौ संत सदा उपकारी, जानत हौ सब रीति।
‘सूर’ स्याम कौ क्यौ बोलै ब्रज, बिनु टारे यह इति।।4067।।