ऊधौ इतनी कहियो जाइ।
हम आवैगे दोऊ भैया, मैया जनि अकुलाइ।।
याकौ विलग बहुत हम मान्यौ, जो कहि पठ्यौ धाइ।
वह गुन हमकौ कहा बिसरिहै, बड़े किए पय प्याइ।।
अरु जब मिल्यौ नंद बाबा सौ, तब कहियो समुझाइ।
तौ लौ दुखी होत नहिं पावै, धौरी धूमरि गाइ।।
जद्यपि इहाँ अनेक भाँति सुख, तदपि रह्यो नहि जाइ।
'सूरदास' देखौ ब्रजबासिनि, तबही हियौ सिराइ।। 3438।।