उर पत देखियत हैं ससि सात।
सोवत हू तैं कुंवरि राधिका, चौंकि परी अधिरात।।
खंड खंड ह्वै गिरे गगन तैं, बासपतिनि के भ्रात।
कै बहु रूप किये मारग तैं, दधि-सुत आवत जात।।
बिधु बिहुरे, बिधु किये सिखंडी, सिव मैं सिव-सुत जात।
सूरदास धारै को धरनी, स्याम सुनै यह बात।।1198।।