उर पत देखियत हैं ससि सात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


उर पत देखियत हैं ससि सात।
सोवत हू तैं कुंवरि राधिका, चौंकि परी अधिरात।।
खंड खंड ह्वै गिरे गगन तैं, बासपति‍नि के भ्रात।
कै बहु रूप किये मारग तैं, दधि-सुत आवत जात।।
बिधु बिहुरे, बिधु किये सिखंडी, सिव मैं सिव-सुत जात।
सूरदास धारै को धरनी, स्याम सुनै यह बात।।1198।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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