ब्रज बसि काके बोल सहौं।
इन लोभी नैननि के काजै, परबस भइ जो रहौं।।
बिसरि लाज गइ सुधि नहिं तन की, अब धौ कहा कहौ।
मेरे जिय मै ऐसी आवति, जमुना जाइ वही।।
इक बन ढूँढ़ि सकल बन ढूँढौं, कहूँ न स्याम लहौं।
'सूरदास' प्रभु तुम्हारे दरस कौ, इहिं दुख अधिक दहौं।। 3247।।