इन्द्रिय सुख ‌इच्छा से विरहित -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

प्रेम तत्त्व एवं गोपी प्रेम का महत्त्व

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राग भैरव - ताल कहरवा


इन्द्रिय-सुख-‌इच्छा से विरहित, अतिशय मधुर कृष्ण-‌अनुराग।
प्रियतम-सुखमय सहज उदित, सर्वस्व त्याग मन भोग-विराग॥
नहीं कामना-लिप्सा कुछ भी, नहीं कहीं ममता-मद-मान।
केवल हृदय प्रेम-रस पूरित निर्मल निरुपम दिव्य महान॥
देना-ही-देना है जिसमें, लेने का न कहीं कुछ काम।
उसी प्रेम-रस-‌आस्वादन के लोभी रहते हैं नित श्याम॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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