इन्द्रप्रस्थ जा मिले बन्धु पाण्डव-गण -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा कृष्ण जन्म महोत्सव एवं जय-गान

Prev.png
राग भीमपलासी - ताल कहरवा

इन्द्रप्रस्थ जा मिले बन्धु पाण्डव-गण से फिर अति मतिमान।
कुरुक्षेत्र के रण-प्रान्गण में दिव्य सुनाया गीता-ज्ञान॥
परम त्यागमय दिव्य प्रेम का महाभावमय राधारूप।
स्वयं दिखाया, मूर्तिमान हो, ऋषि-मुनि-दुर्लभ भाव अनूप॥
बिना त्याग के प्रेम न होता, प्रेम बिना न कभी आनन्द।
राधा-गोपी-प्रेम दिव्य से यह शिक्षा दी आनँदकंद॥
गीता से सिखलाया-“आशा-राग-कामना-द्वेष-ममत्व-
अहंकार-‌अभिमान-नाश, प्रभु की शरणागति, भाव समत्व’॥
यह दिखलाया जीवन में कर स्वयं आचरण अति आदर्श।
मानवरूप बने परतम प्रभु ने, जो विरहित हर्षामर्ष॥
युगपत्‌‌ रसिक-विरागी, भोगी-त्यागी, निष्ठुर-करुणागार।
मायावी-‌अति सरल, गृही-संन्यासी, अति संग्रही-‌उदार॥
कर्मी-ज्ञानी, अति प्रवृा-सुनिवृा नित्य, गुण-निर्गुणरूप।
ममतायुक्त-नित्य अति निर्मम, मोही-निर्मोही अपरूप॥
नित्य परम समता-स्वरूप-निज-रूप-प्रतिष्ठित, नित्य स्वभाव।
नहीं कहीं भी किसी भाँति उन सत्य तव का कभी अभाव॥
क्षर-‌अक्षर, अतीत दोनों से, पूर्ण पुरुष पुरुषोम आप।
प्रकृति-‌अधीश्वर निज माया से प्रकटे हरण शोक-संताप॥
गोपीप्रेम, ज्ञान गीता का दिव्य परम देकर उपदेश-
श्रद्धायुत हो करें सभी आचरण, दिया यह दिव्यादेश॥
जन्माष्टमी-महोत्सव का है परम लाभ यह, सबका सार।
शरणागत हो श्रद्धा से हम पा लें इसे साध्य-‌अनुसार॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः