इनहुँ मैं घटताई कीन्ही।
रसना, स्रवन नैन की होते, की रसनाही इनही दीन्ही।।
वैर कियौ हमसौ विधना रचि, याकी जाति अबै हम चीन्ही।
निठुर निर्दई यातै और न, स्याम वैर हमसौ है लीन्ही।।
या रस ही मैं मगन राधिका, चतुर सखी तबही लखि लीन्ही।
'सूर' स्याम कै रंगहिं राँची, टरति नहीं जल तैं ज्यौं मीन्ही।।1858।।