इत-उत देखत जनम गयौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री



इत-उत देखत जनम गयौ।
या झूठी माया कै कारन, दुहुँ दृग अंध भयौ।
जनम-कष्‍ट तै मातु दुखित भई, अति दुख प्रान सह्यौ।
वै त्रिभुवनपति बिसरि गए तोहिं, सुमिरत क्‍यौं न रह्यौ।
श्रीभागवत सुन्‍यौ नहि कबहूँ, बीचहि भटकि मर्यौ
सूरदास कहै, सब जग बूड़यौ, जुग-जुग भक्त तर्यौ।।291।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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