इत-उत देखत जनम गयौ।
या झूठी माया कै कारन, दुहुँ दृग अंध भयौ।
जनम-कष्ट तै मातु दुखित भई, अति दुख प्रान सह्यौ।
वै त्रिभुवनपति बिसरि गए तोहिं, सुमिरत क्यौं न रह्यौ।
श्रीभागवत सुन्यौ नहि कबहूँ, बीचहि भटकि मर्यौ
सूरदास कहै, सब जग बूड़यौ, जुग-जुग भक्त तर्यौ।।291।।