इततै राधा जाति जमुनतट -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


इततै राधा जाति जमुनतट, उततै हरि आवत घर कौ।
कटि काछनी, वेष नटवर कौ, बीच मिली मुरलीधर कौ।।
चितै रही मुखइंदु मनोहर, वा छबि पर वारति तन कौ।
दूरिहु तै देखत ही जाने, प्राननाथ सुंदर धन कौ।।
रोम पुलक, गदगद बानी कही, कहाँ जात चारे मन कौ।
'सूरदास' प्रभु चोरन सीखे, माखन तै चित-बित-धन कौ।।1930।।

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