इण सरवरियाँ री पाल -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन

राग मारवा


इण सरवरियाँ री पाल मीराँबाई साँपडे ।।टेक।।
साँपड कि‍या असनान, सूरज सामी जप करे ।
होय बिरंगी नार, डगराँ बिच क्‍यूँ खड़ी ।
काँई थारो पीहर दूर, घराँ सासू लड़ी ।
चल्‍यो जारे असल गुँवार, तनै मेरी के पड़ी ।
गुरु म्‍हारा दीन दयाल, हीराँरा पाखरी ।
दियो म्‍हाने ग्‍यान बताय, संगत कर साधरी ।
खोई[1] कुल की लाज, मुकुंद थाँरे कारणे ।
वेगही लीज्‍यो सँभाल, मीरा पड़ी वारणे ।।120।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसके पहले कहीं-कहीं ये पंक्तियां भी आती हैं :- इण सरवदियारा हंस सुरंग थारी पाँखड़ी। राम मिलण कद होय, फड़ोके म्‍हारी आँखरी ।
  2. पाल = भीटेपर, तोर पर। साँपड़े = सम्पादन करती है, निबटती है। सांपड = निबट कर, हाथ मुँह धोकर। सूरज सामी = सूर्य भगवान् का। बिरंगी = विचित्र। डागराँ बिच = राह में। कोई = क्या। पीहर = मायका। असल गुँवार = निरे मूर्ख। तबै = तुझे। के = क्या। पडी = चिंता है। बारणे = द्वारपर।

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