इक दिन हरि हलधर-सँग ग्वारन। गए बन-भीतर गोधन चारन।।
सकल ग्वाल मिलि हरि पैं आए। भूख लगी कहि बचन सुनाए।।
हरि कह्यौ जज्ञ करत तहँ बाम्हन। जाहु उनहिं ढिग भोजन माँगन।।
ग्वाल तुरत तिनकैं ढिग आए। हरि हलधर के बचन सुनाए।।
भोजन देहु भए वै भूखे। यह सुनि कै वै ह्वै गए रूखे।।
जज्ञ-हेत हम करी रसोई। ग्वालनि पहिलैं देहिं न सोई।।
ग्वाल सकल हरि पैं चलि आए। हरि सौं तिनके बचन सुनाए।।
हरि हलधर सौं कह्यौ बुझाई। तियनि पास तुम माँगहु जाई।।
उनकैं हिय दृढ़ भक्ति हमारी। मानि लेहिं वै बात तुम्हारी।।
ग्वाल-बाल तीयनि पै आए। हाथ जोरि कै सीस नवाए।।
हरि भोजन माँग्यौ हैं तुमसौं। आज्ञा देहु कहैं सो उनसौं।।
तिन धनि भाग आपनौ मान्यौ। जावन जन्म सफल करि जान्यौ।।
भोजन बहु प्रकार तिनि दीन्हौ। काहूँ अपनैं सिर धरि लीन्हौ।।
ग्वालनि संग तुरत वै धाईं। अपने मन मैं हर्ष बढ़ाईं।।
काहूँ पुरुष निवारयो आइ। कहाँ जाति है री अतुराइ।।