इक दिन मुरली स्याम बजाई।
मोहे सुर नर और सकल मुनि, उनै बदरिया आई।।
जमुना नीर प्रवाह थकित भयौ, चलै नही जु चलाई।
गाइनि के मुख दाँतनि तृन रहे, बच्छ न छीर पिवाई।।
द्रुम बेली अनुराग पुलकि तनु, ससि थकि निसि न घटाई।
'सूरदास' प्रभु मिलिवै कारन, चली सखी सुधि पाई।। 3347।।