इक दिन नंद चलाई बात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


इक दिन नंद चलाई बात।
कहत सुनत गुन राम कृष्न कै, ह्वै आयौ परभात।।
वैसैहि भोर भयौ जसुमति कौ, लोचन जल न समात।
सुमिरि सनेह बिहरि उर अंतर, ढरि आवत ढरि जात।।
जद्यपि वै वसुदेव देवकी, है निज जननी तात।
वार एक मिलि जाहु ‘सूर’ प्रभु धाई हू कै नात।। 3161।।

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