इक आवत घर तैं चले धाई। एक जात फिरि घर-समुहाई।।
इक टेरत इक दौरे आवत। एक गिरत इक लै जु उठावत।।
एक कहत आवहु रे भाई। बैल देत है सकट गिराई।।
कौन काहि कौं कहै सँभारै। जहाँ-तहाँ सब लोग पुकारैं।।
कोउ गावत, कोउ निर्तत आवैं। स्यासम सखनि सँग लेखत भावैं।।
सूरदास प्रभु सबके नायक। जौ मन करैं सो करिबे लायक।।902।।