इक आवत घर तैं चले धाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


इक आवत घर तैं चले धाई। एक जात फिरि घर-समुहाई।।
इक टेरत इक दौरे आवत। एक गिरत इक लै जु उठावत।।
एक कहत आवहु रे भाई। बैल देत है सकट गिराई।।
कौन काहि कौं कहै सँभारै। जहाँ-तहाँ सब लोग पुकारैं।।
कोउ गावत, कोउ निर्तत आवैं। स्यासम सखनि सँग लेखत भावैं।।
सूरदास प्रभु सबके नायक। जौ मन करैं सो करिबे लायक।।902।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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