आर्त-त्राण परायण, सहज सुहृद -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग भैरवी - ताल कहरवा


आर्त-त्राण-परायण, सहज सुहृद, करुणार्णव, परम उदार।
दीनबन्धु, पामर-‌उद्धारक, पावन पतित, अमित-दातार॥
अशरण-शरण, अकिंचन के धन, भयहर दया-समुद्र अपार।
मुझ-जैसे सम्पूर्ण पतित के लिये तुम्हीं, प्रभु! हो आधार॥
दीन-हीन मुझ अशरण को दे पावन चरण-युगल में स्थान।
कर दो मुझे अभय अति निर्मल-चित्त-चरित्र आशु भगवान॥
तनसे करूँ नित्य मैं सेवा, करूँ वचन से नित गुण-गान।
सेवारत हों सभी इन्द्रियाँ, मन नित करे तुम्हारा ध्यान॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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