आरस सों रस सों पदमाकर -पद्माकर

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आरस सों रस सों पदमाकर -पद्माकर


आरस सों रस सों पदमाकर चौंकि परै चख चुँबन के किये ।
पीक भरी पलकैं झलकैं अलकैं छवि छूटि छटा लिये ।
सो मुख भाखि सकै अब को रिसकै कसकै मसकैं छतियां छिये ।
राति की जागी प्रभात उठी अँगरात जँभात लजात लगी हिये ।

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