आरस सों रस सों पदमाकर -पद्माकर आरस सों रस सों पदमाकर चौंकि परै चख चुँबन के किये । पीक भरी पलकैं झलकैं अलकैं छवि छूटि छटा लिये । सो मुख भाखि सकै अब को रिसकै कसकै मसकैं छतियां छिये । राति की जागी प्रभात उठी अँगरात जँभात लजात लगी हिये । संबंधित लेख - वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः