आरस सों आरत सँभारत न सीस पट ,
गजब गुजारत गरीबन की धार पर ।
कहैं पदमाकर सुरा सों सरसार तैसे ,
बिथुरि बिराजैं बार हीरन के हार पर ।
छहरि छहरि छिति छाजत छरा के छोर,
भोर उठि आई केलि मन्दिर दुवार पर।
एक पग भीतर और एक देहरी पै धरै ,
एक कर कंज एक कर है किवार पर