स्याम जब रुकमिनी हरि सिधाए2 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ



आपने बान सों काटि ध्वज रुक्म कौ, अस्व अरु सारथी तुरत मारे।
रुक्म भू परयौ उठि जुद्ध हरि सौ करयौ, हरि सकल सस्त्र ताके निवारे।।
बहुरि खिसियाइ भगवान कै ढिग चल्यौ, चलत ज्यौ पतँग दीपक निहारे।
खड्ग लै ताहि भगवान मारन चले, रुकमिनी जोरि कर विनय कीन्हौ।।
दोष इन कियौ मोहिं छमा प्रभु कीजियै, भद्र करि सीस जिव दान दीन्हौ।
राम अरु जादवनि सुभट ताके हने, रुधिर करि नीर सरिता बहाई।।
सुभट मनु मकर अरु केस सेवार ज्यौ, धनुष मछ चर्म कूरम बनाई।
बहुरि भगवान कै निकट आए सकल, देखि कै रुक्म कौ हँसे सारे।।
कह्यौ भगवान सौ कहा यह कियौ तुम, छाँड़िवे तै भलौ हुतौ मारै।
मरे तै अप्सरा आइ ताकौ बरतिं, भाजिहै देखि अब गेह नारी।।
प्रभु तुम्हरी मरम रुक्म जान्यौ नहीं, छाँड़ि दीजै याहि अब मुरारी।
रुक्म सिरनाइ या भाँति विनती करौ, बुद्धि बल मर्म तुम्हरौ न जानौ।।
प्रभु तुम अनंत तुम तुमहिं कारन करन मैं कौन भाँति तुमकौ पछानौ।
दीनबंधु कृपासिंधु करुना करन सुनि विनय दया करि छाँड़ि दीन्हौ।।
बहुरि निज नगर पैठ्यौ न सो लाज करि तहै पुनि आपनौ वास कीन्हौ।
आइ भीषम दियो दाइज ता ठौर बहु, स्याम आनँद सहित पुर सिधाये।।
सुनत द्वारावती माहिं उत्सव भयौ, ‘सूर’ जन मगलाचार गाये।। 4183।।

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