आनंद मैं ब्रजनारि हरषीं -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

Prev.png
राग मलार





हरि सँग नीकी लागतिं बूँदै।
कंचुकि चीर चूनरी भीजी कहूँ परी सिर गूँदै।।
मृगनैनी ससि बदनी वाला कनक-कलस-कुच फूँदै।
करिहै अंग मुदित ‘सूरज’ प्रभु मेटि बिरह की दूँदै।। 42 ।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः