आनंदै आनंद बढ़यो अति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग बिलावल


आनंदै आनंद बढ़यो अति।
देवनि दिवि दुंदुभी बजाई, सुनि मथुरा प्रगटे जादवपति।
विद्याधर-किन्नर कलोल मन उपजावत मिलि कंठ अमित गति।
गावत गुन गंधर्व पुलकि तन, नाचतिं सब सुर-नारि रसिक अति।
बरषत सुमन सुदेस सूर सुर, जय-जयकार करत, मानत रति।
सिव-बिरंचि इंद्रादि अमर मुनि, फूले सुख न समात मुदित मति॥6॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः