आनंदै आनंद बढ़यो अति।
देवनि दिवि दुंदुभी बजाई, सुनि मथुरा प्रगटे जादवपति।
विद्याधर-किन्नर कलोल मन उपजावत मिलि कंठ अमित गति।
गावत गुन गंधर्व पुलकि तन, नाचतिं सब सुर-नारि रसिक अति।
बरषत सुमन सुदेस सूर सुर, जय-जयकार करत, मानत रति।
सिव-बिरंचि इंद्रादि अमर मुनि, फूले सुख न समात मुदित मति॥6॥