आजु हौ एक-एक करि टरिहौ।
कै तुमही कै हमही, माधौ, अपुन भरोसै लरिहौ।
हौं तौ पतित सात पीढ़िन कौ, पतितै ह्वै निस्तरिहौ।
अब हौं उबरि नच्यौ चाहत हौं, तुम्हैं विरद विन करिहौं।
कत अपनी परतीति नसावत, मैं पायौ हरि हीरा।
सूर पतित तवहीं उठिहै, प्रभु, जब हँसि दैहौ वीरा।।।134।।