आजु हरि रैनि उनीदे आए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


आजु हरि रैनि उनीदे आए।
अंजन अधर, ललाट महाउर, नैन तमोर खवाए।।
बिनु गुन माल बिराजति उर पर, बंदन भाल लगाए!
मगन देह, सिर पाग लटपटी, भृकुटी चंदन लाए!
हृदय सुभग नखरेख बिराजति, कंकन पीठि बनाए!
'सूरदास' प्रभु यहै अचंभौ तीनि तिलक कहँ पाए।।2520।।

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