आजु हरि धेनु चराए आवत।
मोर-मुकुट बनमाल बिजारत, पीतांबर फहरावत।
जिहिं-जिहिं भाँति ग्वाल सब बोलत, सुनि स्रवननि मन राखत।
आपुन टेर लेत ताही सुर, हरषत पुनि पुनि भाषत।
देखत नंद-जसोदा-रोहिनि, अरु देखत ब्रज-लोग।
सूर स्याम गाइन सँग आए मैया लीन्हे रोग।।493।।