आजु हरि धेनु चराए आवत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी



आजु हरि धेनु चराए आवत।
मोर-मुकुट बनमाल बिजारत, पीतांबर फहरावत।
जिहिं-जिहिं भाँति ग्‍वाल सब बोलत, सुनि स्रवननि मन राखत।
आपुन टेर लेत ताही सुर, हरषत पुनि पुनि भाषत।
देखत नंद-जसोदा-रोहिनि, अरु देखत ब्रज-लोग।
सूर स्‍याम गाइन सँग आए मैया लीन्‍हे रोग।।493।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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