आजु सखी, हौं प्रात समय -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



आजु सखी, हौं प्रात समय दधि मथन उठी अकुलाइ।
भरि भाजन मनि-खंभ निकट धरि, नेति लई कर जाइ।
सुनत सब्द तिहिं छिन समीप मम हरि हँसि आए धाइ।
मोह्यौ बाल-बिनोद-मोद अति, नैननि नृत्य दिखाइ।
चितवनि चलनि हरयौ चित चंचल, चितै रही चित लाइ।
पुलकत मन प्रतिबिंब देखि कै, सबही अंग सुहाइ।
माखन पिंड विभागि दुहूँ कर, मेलत मुख मुसुकाइ।
सूरदास-प्रभु-सिसुता कौ सुख, सकै न हृदय समाइ।।178।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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