आजु सखि देखे स्याम नए (री)।
निकसे आनि अचानक अबहीं, इत फिरि फिरि चिताए (री)।।
मैं तब तैं पछिताति यहै, तन नैन न बहुत भए (री)।
जौ बिधना इतनी जानत है, कत दंग दोइ दए (री)।।
सब दे लेऊँ लाख लोचन कहुँ, जो कोउ करत नए (री)।
हरि प्रति अंग बिलोकन का मैं प्रन करिकै पठए (री)।।
अपनैं चोप बहुत कहँ पइयै, ये हरिसंग गए (री)।
थके चरन सुनि ‘सूर’ मनौ गुन मदन बान बिधए (री)।।1812।।