आजु सखि देखे स्याम नए री -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


आजु सखि देखे स्याम नए (री)।
निकसे आनि अचानक अबहीं, इत फिरि फिरि चिताए (री)।।
मैं तब तैं पछिताति यहै, तन नैन न बहुत भए (री)।
जौ बिधना इतनी जानत है, कत दंग दोइ दए (री)।।
सब दे लेऊँ लाख लोचन कहुँ, जो कोउ करत नए (री)।
हरि प्रति अंग बिलोकन का मैं प्रन करिकै पठए (री)।।
अपनैं चोप बहुत कहँ पइयै, ये हरिसंग गए (री)।
थके चरन सुनि ‘सूर’ मनौ गुन मदन बान बिधए (री)।।1812।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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