आजु रैन हरि कहाँ गँवाई?
लटपटी पाग उनीदे लोचन, छाँड़ि कुँवर हमसौ चतुराई।।
नंद बबा की गाइ चरावत, एक धेनु संध्या नहि आई।
ढूँढत ढूँढत सब ब्रज ढूँढ्यौ भोर भएँ ब्रंदाबन पाई।।
मोर मुकुट मुरली पीतांबर, एक बात की बीस बनाई।
'सूरदास' प्रभु प्रिया मिलन कौ, अकथ कथा गोपाल सुनाई।।2632।।