आजु राधिका रूप अन्हायौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


आजु राधिका रूप अन्हायौ।
देखत बनै कहत नहिं आवै मुख-छबि-उपमा अंत न पायौ।।
अबली अलक, तिलक केसरि कौ ता बिच सेंदुर बिंदु बनायौ।
मानौ पून्यौ चंद्र खेत चढ़ि लरि स्वरभानु सौ घायल आयौ।।
काननि की लरै अति राजतिं मनहुँ मदन रथ चक्र चढ़ायौ।
सीसकूप, मनि नाग सीस धरि, मनु सुहाग कौ छत्र तनायौ।।
बंकित भौंह, चपल अति लोचन, बेसरि रस मुकुताहल छायौ।
मानौ मृगनि अमो भाजन भरि, पियत न बन्यौ दुहूँ ढरकायौ।।
दसनबसन, दसनावलि राजति, चिबुक चारु तिल ताकि बनायौ।
मनहुँ देखि रवि कमल प्रकासित, तापर भृंगी सावक स्वायौ।।
कंचुकि स्याम सुगंध सँवारी चौकी पर नग बन्यौ बनायौ।
मानौ दीपक उदित भवन मै, तिमिर सकुच सरनागत आयौ।।
भूषन-भुजा-ललित-लटकन बर, मनहुँ मिल्यौ अलि पुंज सुहायौ।
एतेहूँ पर रूठ 'सूर' प्रभु, लै दूती दरपन दिखरायौ।।2611।।

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