आजु रघुनाथ पयानो देत
बिह्वल भए स्त्रवन मुनि पूरजन, पुत्र-पिता कौ हेत।
ऊँचे चढ़ि दसरथ लोचन भरि सुत-मुख देखे लेत।
रामचंद्र से पुत्र बिना मैं भूंजब क्यौं यह खेत।
देखत गमन नैन भरि आए, गात गयौ ज्यौं केत।
तात-तात कहि बैन उचारत, ह्वै गए भूप अचेत।
कटि तट तून, हाथ सायक-धनु, सीता बंधु समेत।
सूर गमन गह्वर कौ कीन्हौं जानत पिता अचेत॥39॥