आजु रँग फूले कुँवर कन्हाई।
कबहुँक अधर दसन भरि खंडत, चाखत सुधा मिठाई।।
कबहुँक कुच कर परसि कठिन अति, तहाँ बदन परसावत।
मुख निरखति सकुचति सुकुमारी, मनही मन अति भावत।।
तब प्यारी कर गहि मुख टारति, नैकु लाज नहिं आवत।
'सूरदास' प्रभु कामसिरोमनि, कोककला दिखरावत।।2457।।