आजु तन राधा सज्यौ सिंगार।
नीरज-सुत-सुत-बाहन को भख, स्याम अरुन रंग कौन बिचार।।
मुद्रा-पति-अंचवन-तनया-सुत, ताके उरहिं बनावहि हार।
गिरि-सुत तिन पति बिबस करन कौं अच्छत लै पूजत रिपु मार।।
पंथ-पिता आसन-सुत सोभित, स्याम घटा बन-पंक्ति अपार।
सूरदास-प्रभु अंसु-सुता-तट, क्रीड़त राधा नंदकुमार।।1202।।