आजु घन स्याम की अनुहारि।
आए उनइ साँवरे सजनी, देखि रूप की आरि।।
इंद्र धनुष मनु पीत बसन छवि, दामिनि दसन बिचारि।
जनु बगपाँति माल मोतिनि की, चितवत चित्त निहारि।।
गरजत गगन गिरा गोविद मनु, सुनत नयन भरे बारि।
'सूरदास' गुन सुमिरि स्याम के, बिकल भई ब्रजनारि।। 3315।।