आजु अति सोभित है घनस्याम।
मानहुँ है जीते नँदनंदन, मनसिज सौ संग्राम।।
मुकुलित कच न समात मुकुट में, रोपअरुन दोउ नैन।
स्रम सूचक गति, भाँति अलस बस बोलत बनत न बैन।।
नख-छत-स्रेनि, प्रस्वेद गात तै, चँदन गयौ कछु छूटि।
मदन सुभट के सर सुदेस मनु लगे कवच पट फूटि।।
दसन बसन पर प्रगट पीक मनु सनमुख सहे प्रहार।
'सूरदास' प्रभु परम सूरमा, जाने नंदकुमार।।2461।।