आए स्याम मेरै गेह -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


आए स्याम मेरै गेह।
कही जाति न सखी मोपै, मिले जौन सनेह।।
करति अंग सिंगार बैठी, मुकुर लीन्हे हाथ।
आइ पाछै भए ठाढै, चतुर बर ब्रजनाथ।।
भाव इक मै कियौ, भोरै कहन ताहि लजाउँ।
निरखि अपनी छाँह कौ तिय, और जानि डराउँ।।
जाल रध्रनि रहे ठाढे, निरखि कौतुक स्याम।
नैन औचक आनि मूँदे, सुनहु हरि के काम।।
देति हो उरहनौ तुमको, भए डोलत चोर।
'सूर' प्रभु आए अचानक, भवन बैठी भोर।।2211।।

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