आई संग आलिन के ननद पठाई नीठि,
सोहत सोहाई सीस ईड़री सुपट की।
कहैं पद्माकर गंभीर जमुना के तीर,
लागी घट भरन नवेली नेह अटकी।
ताही समै मोहन जो बाँसुरी बजाई, तामें,
मधुर मलार गाई ओर बंसीवट की।
तान लागे लटकी, रही न सुधि घूँघट की,
घर की, न घाट की, न बाट की, न घट की