आई खेलि होरी, कहूँ नवल किसोरी भोरी -पद्माकर

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आई खेलि होरी, कहूँ नवल किसोरी भोरी -पद्माकर


आई खेलि होरी, कहूँ नवल किसोरी भोरी,
बोरी गई रंगन सुगंधन झकोरै है।
कहि पदमाकर इकंत चलि चौकि चढ़ि,
हारन के बारन के बंद-फंद छोरै है ॥
घाघरे की घूमनि, उरुन की दुबीचै पारि,
आंगी हू उतारि, सुकुमार मुख मोरै है।
दंतन अधर दाबि, दूनरि भई सी चाप,
चौवर-पचौवर कै चूनरि निचौरै है ॥

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